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    A MULTI MODE DEPICTION OF THE VARIOUS FORMS OF HINDI POETRY LYRICS TUNES AND SONGS.BY ARUN BAJAJ “PARBAS”

    From the Bottom of the Eternal Heart

    This is not just about a book … or passion of “parbas” the poetic expression of the present day happenings political events current affairs social structure and above all the “love” a rare item in the present day world. Has passion aptitude and rigor to clearly depicts in his poetry not only in his maiden book “kuch dil se kuch kalam se” but in all his writtings by arun kumarbajaj “parbas” the poet, lyrics writer, song writer & script writer

    Talk of the Week Poem of the Week
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    A MULTI MODE DEPICTION OF THE VARIOUS FORMS OF HINDI POETRY LYRICS TUNES AND SONGS.BY ARUN BAJAJ “PARBAS”

    परत दर परत दिल की सुर्ख रूह सियाही से "परबस"

    कविता लिख देना शायद उतना मुश्किल नहीं जितना पढने वाले के दिल तक उसका मक्ता पहुंचाना. अरुण बजाज “परबस” की रचनाओं में एक तरफ प्रेमी की विरह वेदना, प्रेमिका को पाने की तड़प, भावनाओं की गहराई भी है तो दूसरी तरफ बेबाक सामाजिक विषय जो मानवीय संवेदनाओं को झंझोर देती है. उनके गीत भी बहुत कुछ अन कहा कह जाते है | उन्होंने गीतों में कविता का संगम मधुर संगीत में पिरोया है | जो ह्रदय स्पर्शी बन पड़ा है |

    हफ्ते की बात सप्ताह की कविता
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लेखक का प्रतिवेदन

जिंदगी यूँ भी बीत जाती है के पता ही नहीं लगता | आज भी लगता है जैसे कल की बात हो जब बाल सुलभ अठखेलियाँ करते हुए हम भाई बहन बड़े हो रहे थे | उस दिन तुतला कर बोलने वाला बालक आज आपके हुजुर में है | बात उन दिनों की है जब में मारवाड़ी कमर्शिअल हाई स्कूल में पढता था हिंदी और अग्रेजी विषयों में उसी दिन से रूचि रही १९६७ में स्कूल पास करकर जब कोलेज जाने लगा तो कोर्से की किताबों के अलावा हिंदी साहित्य के अन्य प्रकाशन पढ़ने का शौक चर्राया. इसी दरमियाँ दोस्तों में कुछ टुटा फूटा लिख कर सुनाने लगा. कभी वाहवाही भी मिली तो कभी दोस्तों ने मजाक का पात्र भी बनाया| १९७३ में शादी हो गई | १९८० तक आते आते परिवार में दो पुत्रियां एक पुत्र का जन्म हुआ | लेखन में रूचि तो रही पर शायद वो गति कम हो गयी | लेखन कार्य चलता रहा ये सोच के कभी मौका होगा तब इनका संपादन करेंगे मन की बात तो लिख ही ली जाए |

मेरे लेखन में मेरी माताजी का बहुत सम्बल मिलता रहा| उन्हें संतो को सुनना बहुत अच्छा लगता था| वो संत कथा सुन के आती थी उसके सारांश हम बच्चों को सुनाती थी| उस दौरान मैं अपने विवेक से जो भी मेरे मन में आता था लिख लेता था | शायद उसकी छाप आपको मेरी कविताओं में कहीं ना कहीं जरुर मिलेगी| १९८७ में उनके निधन के बाद जवाबदारियाँ बढ़ गयी | पिताजी की तबियत भी खराब चलती थी सो १९९३ तक लेखन कार्य बिलकुल बंद रहा| मेरी रचनाये बंद पन्नों में पड़ी रही| १९९८ में मेरी बड़ी लड़की की शादी हो गयी फिर छोटी लड़की और लड़के की शादी हो गयी| जिंदगी की गाडी फिर से अपने ढर्रे पर चलने लगी| एक बार फिर लेखनी को उठाया | इस बार मेरी लेखनी का प्रेरणा स्त्रोत्र मेरा अपना परिवार था|

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अरूण बजाज का इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया कवरेज

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